गीता शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार है, पिछले 20 साल से वो पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं, उन्होंने दिल्ली, हरियाणा के प्रसिद्ध चैनल टोटल टीवी, नेशनल न्यूज चैनल जैन टीवी और सीएनबीसी में बतौर एंकर, पत्रकार काम किया है। खबरों की भाग दौड़ के बीच सूकून के कुछ पल कहानियां लिखकर गुजारे जो धीरे-धीरे सोशल मीडिया के जरीये सब तक पहुंच रहे हैं।
सोमवार, 26 जून 2023
MY BOOK : Pyar Mujhse Jo Kiya Tumne
नभ और धारा की ये कहानी दोस्ती, प्यार और नफरत के बीच के अजीब सफर से गुजरती है। नभ एक आर्मी ऑफिसर है, जो आर्मी में इसलिए गया क्योंकि उसे अपनी बचपन की दोस्त धारा की नाराजगी को दूर करना था। धारा और नभ बचपन में गहरे दोस्त थे लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि ये दोस्ती नफरत में बदल गई। धारा ने अपने हालात और पापा से एक लंबी जंग लड़ने के बाद अपना डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया, लेकिन उसे ये नहीं पता था कि एक दिन नभ खुद मरीज बनकर आएगा। आर्मी का ये जांबाज़ सिपाही तीन गोली खाकर उसी के हॉस्पिटल में एडमिट हुआ। नभ को ठीक करते-करते कब नफरत पहले दोस्ती और फिर प्यार में बदल गई, धारा को पता ही नहीं चला। उनकी शादी की तैयारियां होने लगीं लेकिन एक दिन नभ फिर गायब हो गया। धारा उसे ढू्ंढती रही और जब वो मिला तो उसका राज़ जानकर धारा का दिल फिर टूट गया। उनकी किस्मत दोनों को फिर आमने-सामने तो लेकर आई लेकिन क्या इस बार भी प्यार नफरत में ही बदलने वाला है?
रविवार, 13 मार्च 2022
वायरल आशिक - Buy E book or PaperBack
हर बार कहती है क्यों नहीं? BUY E BOOK
तुम इस बार भी क्यों नहीं?
अंधेरे से जो बिखरे हैं
रोशनी का निशान क्यों नहीं?
रातों की खामोशी को सुनने की मजबूरी
चिड़ियों की आवाजों की छन छन क्यों नही?
वक्त ने बांधी है मेरे दिल की उड़ान भी
इस वक्त से लड़ने की ताकत क्यों नहीं?
जाने को कहती है हर रोज मुझसे
तेरी यादों की फिर भी विदाई क्यों नहीं?
जिंदा है इन आंखों के आंसू की लकीरें हाथों की लकीरों पर तेरा नाम क्यों नहीं?
कुछ कहानियां ऐसी ही उलझी होती है कभी हां कभी ना और फिर एक लंबी खामोशी आ जाती है बीच में,,,, ऐसा लगता ये कभी खत्म नहीं होगी लेकिन फिर एक दिन यूं ही कुछ यूं होता है एक पल में सब नया हो जाता है जैसे हमारे वायरल आशिक के साथ हुआ
बुधवार, 13 जून 2018
छल, कपट, धरना, अनशन राजनीति की मारी दिल्ली बेचारी!
कोई दिखता नहीं ऐसा जो वाकई दिल्ली के बारे
में सोच रहा हो. अपनी राजनीति के लालच से आंखें बंद किए सब बस कुर्सी पाने के पैंतरे चल रहे हैं. एलजी हाउस के
अंदर बैठी केजरीवाल केबिनेट दिल्ली के भविष्य के लिये भूख प्यास से लड़ है या
फिर अपने अस्तित्व को बचाने का आखिरी दांव चल रही है? बात धरने की है तो उस पर से तो दिल्ली क्या
शायद देश के बाकी हिस्सों के लोगों का भरोसा बहुत पहले ही उठ चुका है. किसी का भूखा प्यासा
रहना या रहने का दावा करना अब किसी को परेशान नहीं करता. कोई अपने घरों में
बैठकर टीवी पर धरने और अनशन की बात सुनकर जरा भी भावुक नहीं होता और फिर दिल्ली
की परेशानियां भी तो नई नहीं है वो तो हमेशा से रही है और आगे भी रहेंगी सब जानते
हैं कुछ नहीं बदलेगा.
बदलने के लिये जिसे दिल्ली ने चुना वो तो
खुद बदले बदले दिखाई दे रहे हैं, कभी काल बनकर गरजने की बातें करने वाले आज निढाल होकर
सोफे पर पड़े हैं, कहते हैं कोई काम करने नहीं दे रहा,,,
काम करने देने का वादा क्या कभी केजरीवाल से
किया था किसी ने?
क्या मोदी जी की सरकार ने उन्हें कहीं
लिखकर दिया था कि वो उन्हें हर वो चीज मुहैया कराएंगे जिससे वो दिल्ली को पेरिस
बना दे?
क्या पूर्व सीएम शीला दीक्षित ने कोई रियासत
छोड़ी थी केजरीवाल के लिये जहां उन्हें राजसी ठाठ बाठ मिलेंगे नौकर चाकर आगे पीछे
घूमेंगे और उनके मुंह से शब्द निकलने के पहले ही सारे काम हो जाएंगे?
भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये नई राजनीति
करने के लिये तो आए थे केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी लेकर फिर आज तीन दिन से एलजी
के छोटे से वेटिंग रूम में क्यों बंद है?
किससे बचने की कोशिश में हैं आप? काम ना कर पाने
की जवाबदेही से या फिर खुद को लाचार दिखाकर काम ना कर पाने का बहाना ढूंढ रहे हैं?
सिर्फ राजनीति ही क्यों किसी भी फील्ड में
देखिये कोई किसी को काम नहीं करने देना चाहता,,, दूसरा ज्यादा काम करेगा तो सबको
करना पड़ेगा ये मानसिकता तो हर जगह है लेकिन लोग लड़ते हैं आगे बढ़ते हैं क्योंकि
इसके अलावा कोई चारा नहीं होता
सीएम बनने के बाद भी लाचारी का दामन थाम कर
वोट का जुगाड़ करने की अगर सोच आप के अंदर फिर से पनप रही है तो शायद इस बार
निराशा के अलावा कुछ ना मिले दिल्ली के दिल में जो थोड़ी उम्मीद आम आदमी पार्टी से
बची है शायद वो भी खत्म हो जाए,,,, एलजी अनिल बैजल की चुप्पी लोग समझ सकते हैं
क्योंकि इससे ज्यादा वो कुछ कर भी नहीं सकते,,,नजीब जंग पर हिटलर होने के आरोप
तो पचा गई दिल्ली लेकिन हर एलजी हिटलर होगा ये मानना थोड़ा मुश्किल है वैसे भी
दिल्ली को डोर टू डोर सरकारी सेवाओं की उतनी जरूरत नहीं जितनी बिजली पानी, सड़कों
की मरम्मत, एमएलए फंड का सही इस्तेमाल चाहिए ,,,हर दिन डीटीसी की बसों की भीड़
में धक्के खाने वाले को दिल्ली के पूर्ण राज्य बनने से क्या हासिल हो जाएगा? नई योजनाओं को
शुरू करने की लड़ाई लड़ने से पहले एक बार पुरानी योजनाओं की रिपोर्ट पर नजर डाल ले
तो क्या ये बेहतर नहीं होगा? जनता से सीधे जुड़कर क्यों नहीं विधायक अपने स्तर पर
उन कामों को करवा रहे जिसके लिये एलजी की परमिशन की जरूरत ही नहीं, मोदी जी गली मोहल्लों
में विधायकों के काम करवाने में तो शायद अड़ंगा ना लगाये.
आम आदमी पार्टी शायद भूल गई पर दिल्ली को तो
याद है कि उनकी छोटी छोटी लड़ाईयों को लड़ने के लिये ही केजरीवाल को सत्ता सौंपी
थी पर अब तो AAP परेशानियां को कम करने की बजाय राजनीति में उलझकर बेचारगी
साबित करने पर उतारू नजर आ रही है.
शुक्रवार, 16 मार्च 2018
आंदोलन के लिये भी मांगेगे माफी?
दिल्ली
के सीएम और आम आदमी पार्टी के
मुखिया अरविंद केजरीवाल एक
बार फिर माफी के मोड में आ गये
हैं.... एक बार
दिल्ली से सीएम पद छोड़ने की
माफी मांगी थी केजरीवाल ने...
तब तो माफी मिल गई
थी और दिल्ली ने दोबारा सीएम
भी बना दिया था लेकिन इस बार
ये माफी ना सिर्फ केजरीवाल
बल्कि आप पर भारी पड़ती दिख
रही है
ये भाषा कैसे हो गई आप की? आंदोलन की हुंकार हाथ जोड़कर गिड़िगड़ाने पर कैसे उतर आई? क्या कानूनी पचड़ों से बचने के लिये आप ने पैंतरा चला हैं... लेकिन अगर ऐसा है तो क्यों नहीं पार्टी में स्वराज और पारदर्शिता का उदाहरण पेश किया...पंजाब में केजरीवाल की माफी ने तूफान खड़ा कर दिया... भगवंत मान ने इस्तीफा दिया और सुखपाल सिंह खेरा ने ट्वीट कर हैरानी जताई …. पंजाब में आप की छवि का अब क्या होगा ये एक बड़ा सवाल सामने हैं
इधर आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह इस सवाल से बचते नजर आये... साथ ही मजीठिया को एक बार फिर ड्रग डीलर कह गये...
मौका तो आप के बागियों के लिये भी बुरा नहीं...आप में सिद्धांतों के मरने की दुहाई देने वाले कुमार विश्वास अपनी कविता से फिर तंज कस गये... कुमार विश्वास ने ट्विटर पर लिखा- "एकता बांटने में माहिर है, खुद की जड़ काटने में माहिर है, हम क्या उस शख्स पर थूकें जो खुद, थूक कर चाटने में माहिर है!"
दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने भी ब्लॉग दागा और आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल को हटाकर आंदोलन बचाने की अपील की...
गुरुवार, 4 जनवरी 2018
रूठे कुमार और खोया विश्वास
भ्रष्टाचार
के नाम पर बनी पार्टी में
भ्रष्टाचार फिर एक मुद्दा बन
गया है अन्ना आंदोलन का एक और
सिपाही शहीद हुआ तो आप में
संग्राम होना तय है... समर्थक
केजरीवाल से जवाब मांग रहे
हैं और आप नेता कुमार को पार्टी
खत्म करने का केंद्र बता रहे
हैं
आम आदमी पार्टी में कुमार विश्वास को दरकिनार करने का क्या मतलब निकाला जाए? कुमार के मुताबिक उन्हें जिस बात का दंड मिला है वो वही है जो बात खुद केजरीवाल और आप के बाकी सिपहसलार कहते थे....भ्रष्टाचार पर टूटा विश्वास क्या फिर जुड़ पाएगा?
कुमार की आवाज क्यों बर्दाश्त नहीं हुई आप से....बातें... दावे...भ्रष्टाचार की खात्मे की कसमें तो उस मंच पर खुद अन्ना आंदोलन से जुड़े लोगों ने खाई थी....
अन्ना के मंच से गूंजी ये आवाज देश भर से आये आंदोलनकारियों में जोश भर रही थी... कविता से सच का बखान और अनछुए पहलुओं को छूने वाले कवि कुमार क्यों आज आप से अलग नजर आ रहे हैं....
भ्रष्टाचार से टूटा विश्वास और अन्ना का एक और सिपाही शहीद हो गया है.... अन्ना आंदोलन के समय मंच की भीड़ का हर चेहरा जाना पहचाना जरूर है लेकिन आप के साथ नहीं.... एक एक कर कलह की भेंट चढ़े भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का संकल्प करने वाले आप के पुराने साथी और धीरे धीरे आप से भरोसा कम होने की बातें भी सामने आने लगी....पिछले विधानसभा चुनाव का भारी जन समर्थन दोबारा किसी चुनाव में दिखा नहीं आप के लिये...दिल्ली के लोगों के मन पढ़ने की कोशिश की जाए तो ज्यादातर खुद को आप के वादे पूरे न होने से ठगा सा महसूस करते हैं …विपक्षी तो क्या अपने भी सवाल पूछने लगे कि ईमानदारी और भ्रष्टाचार मिटाने की बातें कहां गई.... भ्रष्टाचारियों का काल कहलाने वाले केजरीवाल ने कितने भ्रष्टाचारियों को थर थर कांपने पर मजबूर किया?
भ्रष्टाचार ही वो आग थी जो आप के बनने की नींव बनी और अब भी भ्रष्टाचार ही पार्टी के लिये सबसे बड़ा मुद्दा है लेकिन इस बार भ्रष्टाचार मिटाने की जंग की बात नहीं हो रही... अपना विश्वास ही सवाल बनकर भ्रष्टाचार का दंड मिलने की बात कह कर जवाब मांग रहा है कुमार के मुताबिक केजरीवाल की नाराजगी कुमार से उस वीडियो को लेकर है जो उन्होंने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बनाया था...कुमार का गुस्सा और निराशा समर्थकों को सड़क पर ले आया... केजरीवाल के घर के बाहर इकट्ठा समर्थक ही सवाल कर रहे हैं कि क्यों टिकट करोड़पतियों को दी गई....अन्ना आंदोलन के एक और सिपाही का शहीद होना क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के आप के दावे पर चोट करेगा?
वो जिनके पास हुकूमत भी है हुजूम भी है
वो इस फकीर से क्यूं पूछे रास्ता क्या है...
कुमार विश्वास की इन पंक्तियों का इशारा आज और सार्थक सा लगता है...आप का साथ छूटता नजर आ रहा है... विश्वास कमजोर होता नजर आ रहा है और डोर जिनसे आप बंधी है उसकी गांठे साफ नजर आ रही है... कितनी बार कुमार ने बातों बातों में इशारों इशारों में कहा... चुनावी बिसात से कुमार नाम के सूरमा की गैरमौजूदगी भी सवालों के घेरे में आई लेकिन उनकी कविताओं का सार आम आदमी पार्टी या तो समझ नहीं पाई या समझ कर भी अंजान बनी रही...
ये हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले
यह भी सही वह भी सही
संघर्ष की राह पर सब सहने का ये जज्बा दिखाया था कुमार विश्वास ने जब भ्रष्टाचार के खिलाफ उठे जनलोकपाल आंदोलन में वो शामिल हुए.. कुमार विश्वास अगस्त 2011 के दौरान जनलोकपाल आंदोलन के लिए गठित टीम अन्ना के एक सक्रिय सदस्य रहे...आंदोलन के दौरान पूरे देश से आए लोगों को जोशो खरोश से भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी कुमार विश्वास ने... अपने शब्दों और शैली से वो लोगों के दिलो दिमाग पर छा गये.... अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी को बनाने और संवारने में अपना जी जान एक किया कुमार विश्वास ने... २६ नवम्बर 2012 को बनी आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डॉ॰ कुमार विश्वास ने चुनाव में भी पार्टी के लिये हाथ आजमाया अमेठी से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाये...गांधी परिवार के गढ़ वाली सीट पर कुमार ने राहुल गांधी से लोहा लिया....
लोकसभा की हार से हौसले जब पस्त होने लगे आम आदमी पार्टी के और आरोपों के साथ कई विवादों ने जन्म लिया तो कुमार विश्वास प्रवक्ता बन आप का बचाव हर मोर्चे पर करते नजर आये … दिल्ली की बड़ी जीत में विश्वास की नींव रखने में कुमार विश्वास का बड़ा हाथ रहा... कार्यकर्ताओं से लेकर दिल्ली की जनता में दोबारा भरोसा जगाने की आवाज बने कुमार.... फिर कब कैसे और कहां से आप से दूरियां बननी शुरु हुई... कैसे दरारें सामने आई... क्यों नहीं दिखा विश्वास का अविश्वास... क्या पंजाब, गोवा की हार से पहले से कुमार ने आप को अपना मानना छोड़ दिया था? क्यों ट्वीट में बयानों में नाराजगी दिख रही थी कुमार की.... अलग होने के पहले क्या कुमार ने मौका दिया था आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को....
आम आदमी पार्टी में कुमार विश्वास को दरकिनार करने का क्या मतलब निकाला जाए? कुमार के मुताबिक उन्हें जिस बात का दंड मिला है वो वही है जो बात खुद केजरीवाल और आप के बाकी सिपहसलार कहते थे....भ्रष्टाचार पर टूटा विश्वास क्या फिर जुड़ पाएगा?
कुमार की आवाज क्यों बर्दाश्त नहीं हुई आप से....बातें... दावे...भ्रष्टाचार की खात्मे की कसमें तो उस मंच पर खुद अन्ना आंदोलन से जुड़े लोगों ने खाई थी....
अन्ना के मंच से गूंजी ये आवाज देश भर से आये आंदोलनकारियों में जोश भर रही थी... कविता से सच का बखान और अनछुए पहलुओं को छूने वाले कवि कुमार क्यों आज आप से अलग नजर आ रहे हैं....
भ्रष्टाचार से टूटा विश्वास और अन्ना का एक और सिपाही शहीद हो गया है.... अन्ना आंदोलन के समय मंच की भीड़ का हर चेहरा जाना पहचाना जरूर है लेकिन आप के साथ नहीं.... एक एक कर कलह की भेंट चढ़े भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का संकल्प करने वाले आप के पुराने साथी और धीरे धीरे आप से भरोसा कम होने की बातें भी सामने आने लगी....पिछले विधानसभा चुनाव का भारी जन समर्थन दोबारा किसी चुनाव में दिखा नहीं आप के लिये...दिल्ली के लोगों के मन पढ़ने की कोशिश की जाए तो ज्यादातर खुद को आप के वादे पूरे न होने से ठगा सा महसूस करते हैं …विपक्षी तो क्या अपने भी सवाल पूछने लगे कि ईमानदारी और भ्रष्टाचार मिटाने की बातें कहां गई.... भ्रष्टाचारियों का काल कहलाने वाले केजरीवाल ने कितने भ्रष्टाचारियों को थर थर कांपने पर मजबूर किया?
भ्रष्टाचार ही वो आग थी जो आप के बनने की नींव बनी और अब भी भ्रष्टाचार ही पार्टी के लिये सबसे बड़ा मुद्दा है लेकिन इस बार भ्रष्टाचार मिटाने की जंग की बात नहीं हो रही... अपना विश्वास ही सवाल बनकर भ्रष्टाचार का दंड मिलने की बात कह कर जवाब मांग रहा है कुमार के मुताबिक केजरीवाल की नाराजगी कुमार से उस वीडियो को लेकर है जो उन्होंने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बनाया था...कुमार का गुस्सा और निराशा समर्थकों को सड़क पर ले आया... केजरीवाल के घर के बाहर इकट्ठा समर्थक ही सवाल कर रहे हैं कि क्यों टिकट करोड़पतियों को दी गई....अन्ना आंदोलन के एक और सिपाही का शहीद होना क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के आप के दावे पर चोट करेगा?
वो जिनके पास हुकूमत भी है हुजूम भी है
वो इस फकीर से क्यूं पूछे रास्ता क्या है...
कुमार विश्वास की इन पंक्तियों का इशारा आज और सार्थक सा लगता है...आप का साथ छूटता नजर आ रहा है... विश्वास कमजोर होता नजर आ रहा है और डोर जिनसे आप बंधी है उसकी गांठे साफ नजर आ रही है... कितनी बार कुमार ने बातों बातों में इशारों इशारों में कहा... चुनावी बिसात से कुमार नाम के सूरमा की गैरमौजूदगी भी सवालों के घेरे में आई लेकिन उनकी कविताओं का सार आम आदमी पार्टी या तो समझ नहीं पाई या समझ कर भी अंजान बनी रही...
ये हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले
यह भी सही वह भी सही
संघर्ष की राह पर सब सहने का ये जज्बा दिखाया था कुमार विश्वास ने जब भ्रष्टाचार के खिलाफ उठे जनलोकपाल आंदोलन में वो शामिल हुए.. कुमार विश्वास अगस्त 2011 के दौरान जनलोकपाल आंदोलन के लिए गठित टीम अन्ना के एक सक्रिय सदस्य रहे...आंदोलन के दौरान पूरे देश से आए लोगों को जोशो खरोश से भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी कुमार विश्वास ने... अपने शब्दों और शैली से वो लोगों के दिलो दिमाग पर छा गये.... अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी को बनाने और संवारने में अपना जी जान एक किया कुमार विश्वास ने... २६ नवम्बर 2012 को बनी आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डॉ॰ कुमार विश्वास ने चुनाव में भी पार्टी के लिये हाथ आजमाया अमेठी से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाये...गांधी परिवार के गढ़ वाली सीट पर कुमार ने राहुल गांधी से लोहा लिया....
लोकसभा की हार से हौसले जब पस्त होने लगे आम आदमी पार्टी के और आरोपों के साथ कई विवादों ने जन्म लिया तो कुमार विश्वास प्रवक्ता बन आप का बचाव हर मोर्चे पर करते नजर आये … दिल्ली की बड़ी जीत में विश्वास की नींव रखने में कुमार विश्वास का बड़ा हाथ रहा... कार्यकर्ताओं से लेकर दिल्ली की जनता में दोबारा भरोसा जगाने की आवाज बने कुमार.... फिर कब कैसे और कहां से आप से दूरियां बननी शुरु हुई... कैसे दरारें सामने आई... क्यों नहीं दिखा विश्वास का अविश्वास... क्या पंजाब, गोवा की हार से पहले से कुमार ने आप को अपना मानना छोड़ दिया था? क्यों ट्वीट में बयानों में नाराजगी दिख रही थी कुमार की.... अलग होने के पहले क्या कुमार ने मौका दिया था आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को....
शनिवार, 30 दिसंबर 2017
क्या बदलेगा 2018 में सिर्फ तारीख ?
लोग
पूछ रहे हैं क्या बदलेगा 2018
में
सिर्फ तारीख ही तो बदलेगी
जिंदगी तो वही रहेगी...
हालात
तो नहीं बदलेंगे...
मैं
सोच रही हूं क्यों बदलेगा उनके
लिये कुछ भी जो अपनी सोच नहीं
बदल सकते...
क्यों
बदलेगा कुछ जब वो कुछ बदलते
हुए देखना ही नहीं चाहते...
वही
जिंदगी...
वही
दिन...
वही
रात लिये आंख बंद करते और खोलते
हैं...
तो
क्यों दिखेगा कुछ बदलता हुआ...
महकता
हुआ...
चमकता
हुआ,..जिंदगी
तारीख की मोहताज तो नहीं...वो
तो चलती रहती है...
नया
साल आएगा तो कुछ नया भी तो
लाएगा...सूरज
कुछ और तेज चमकेगा क्योंकि
ओजोन लेयर पतली हो रही है...
गर्मी
कुछ और बढ़ेगी क्योंकि ग्लोबल
वॉर्मिंग हो रही है...हां
हम ही खराब कर रहे हैं अपना
भविष्य तो और क्या दिखेगा...2018
शायद
और पॉल्यूशन दिखाएं दिल्ली,
बीजिंग
में शायद कुछ और सांस लेना
मुश्किल हो जाए...पर
मेरे दोस्त हम जीना नहीं
छोड़ेंगे...
फिर
भी उम्मीद करेंगे कुछ बेहतर
हो...
और
होगा ही...
होने
से रोक लेगा...
क्योंकी
बदलना तो अपने हाथ में हैं....
खुद
को बदलो दुनिया तो अपने आप बदल
जाएगी....
रोज
वाले रास्ते बोरिंग लगते हैं
तो नये साल में नया रास्ता
ढूंढ लो...मूड
बदलना है तो गानों की प्लेलिस्ट
बदल लो...किसी
से परेशान हो तो उससे दोस्ती
कर लो...एक
फूल तोड़कर अपने कोट की पॉकेट
में डाल लो...एक
चॉकलेट खुद अपने खरीद लो...
एक
न्यू ईयर रेजोल्यूशन खुद को
बिगाड़ने का भी हो...बस
कुछ यूं बदलो कि इस साल थोड़ी
शरारतों को मौका मिले...
अंदर
जो बात दबी है सालों से उसको
आजादी का भी रास्ता खुले...
बदलकर
देखो...
अपनी
मुस्कान....
अपना
अंदाज..
किसी
बच्चे की तरह..
बड़ी
सोच हो तो बड़ी उम्र का फायदा...
नहीं
तो बड़ा होकर क्या करना है...
साल
2018 बस
ये मैसेज ला रहा..
''This
Year Believe In Yourself And Achieve Everything You Deserve'' Happy
New Year
शनिवार, 16 दिसंबर 2017
बेटी होना अभिशाप ?
क्या बेटी होना अभिशाप है... दुख होता है अपने देश में ये सवाल पूछते हुए... तकलीफ होती है ये सेाचते हुए भी ये वो देश है जहां भारत को माता कहा जाता है धरती मां के लिये जान न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं जवान... वो देश जहां देवियों को मंदिर में पूजा जाता है... आज उसी देश से हम ये सवाल कर रहे हैं... क्या बेटी होना अभिशाप है...
दरिंदों का... हैवानों का और रेपिस्ट का महाजाल उन मासूमों को भी नहीं बख्श रहा जिन्होंने ठीक से चलना भी नहीं सीखा... बेटियों पर बुरी नजर रखने वालों की गंदी सोच बदलने में सरकारें और कानून नाकाम सा दिखता है पांच साल पहले हुए निर्भया कांड के बाद जली लौ बहुत पहले ही दम तोड़ चुकी है और अब ये सवाल हमारी मासूम बेटियां कर रही है कि क्या ऐसा देश हमें विरासत में मिलेगा जहां लड़कियां सुरक्षित नहीं...
मासूम से इन चेहरों की हंसी सब रोशन करती है.. नन्हीं परीयों सी हंसती गाती लड़कियां ही घर आंगन को खुशहाल करती है लेकिन जब इन्हीं परीयों पर शैतानों का काला साया पड़ता है तो हाल उस निर्भया सा होता है जो अपने मान सम्मान को लेकर लड़ी लेकिन हैवानों से जीत नहीं पाई... अपनी अस्मत और जान गवांने के बाद भी निर्भया ने एक सवाल एक आंदोलन की चिंगारी खड़ी की..पांच साल पहले 16 दिसंबर को निर्भया से हुआ गैंगरेप पूरा देश को एकजुट कर गया... रेप के मामलों में जल्द सजा और फांसी की कड़ी कार्रवाई की आवाज उठी... सड़कों पर इकट्ठा हुए लोग सरकार तक अपनी अावाज पहुंचाने संसद तक पहुंच गये... एक उम्मीद की लौ जली कि अब कोई निर्भया दरिंदों का शिकार नहीं होगी... फिर कोई मासूम अपने सपनों को रौंदने वाली काली रात का सामना नहीं करेगी...
पांच साल बीत गये... क्या कुछ बदला....
बदलेगा कैसे.... जब आज भी उकलाना में पांच साल की मासूम हैवानियत का शिकार होकर मौत की नींद सो गई और हम कुछ नहीं कर पाये...
बदलेगा कैसे जब दिल्ली राजधानी होकर भी बेटियों को सुरक्षित नहीं रख पा रही...
बदलेगा कैसे जब यूपी के मैनपुरी में नाबालिग के साथ गैंगरेप के बाद उसे कथित तौर पर जलाने की घटना सामने आती है
इसी तरह न जाने कितनी गुड़ियां भेंट चढ़ कुछ सिरफिरे लोगों की विकृत मासिकता की... आज हैवान मासूम बेटियों को नोचने और मौत की नींद सुलाने में नहीं झिझकते...
देश भर बलात्कार जैसे घिनौने अपराध दिन ब दिन बढ़ रहे हैं छोटी-छोटी 11 महीने की बच्चियों तक दिल्ली में सुरक्षित नहीं है NCRB के 2016 के वार्षिक आंकड़ें भी कहते हैं कि दिल्ली में हर दिन औसतन 3 बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहा है... क्या अब भी ये कहना गलत होगा कि बेटी होना अभिशाप है...
रेप की घटनाओं के आंकड़े बताते हैं कि ये कैंसर हमारे समाज में किस कदर फैल रहा है...हाल की कुछ घटनाएं तो और भी झकझोरने वाली है मासूमों से उनका बचपन छीन कर उन्हें मौत के घाट उतारने वाले हैवान कब तक यूं ही घिनौना खेल खेलते रहेंगे
हरियाणा के उकलाना में एक पांच साल की मासूम के साथ कुछ दिन पहले जो कुछ हुआ है उसने ये साबित कर दिया है की मासूमों और महिलाओं की सुरक्षा से जुडे सरकार के तमाम दावे झूठे हैं,,,, निर्भया कांड के बाद बदलाव लाने की जो कसमें खाई गई थी वो सब झूठी हैं,,,, उकलाना में हवस के कुछ दरिदों ने मां के आंचल में सो रही पांच साल की मासूम के जीवन में ऐसी सेंध लगाई की वो मासूम इस दुनिया को ही छोड गई,,,, इंसान की शक्ल में छुपे हवस के भेडियों ने पांच साल की इस मासूम के गुप्तांग में लकडी ठूंसकर इसे मौत के घाट उतार दिया,,,, पूरी वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी ने मासूम को टेलीफोन एक्सचेंज के पास फेंका और मौके से फरार हो गया,,,,
इससे पहले एक दिसंबर को खबर आई कि ऐसी दरिंदगी गुरुग्राम में भी हुई
गांव डूंडाहेड़ा में युवती से मार्च में रेप हुआ मामला कोर्ट में है लेकिन इसी बीच आरोपी ने उसे माफी मांगने और केस खत्म करने के लिये मिलने बुलाया...पहले रेप और फिर पीड़िता को बुलाकर धोखे से उसकर एसिड फेंका आरोपियों की हैवानियत यहीं नहीं थमी आरोपियों ने पीडिता के गुप्तांगों में भी एसिड डाल दिया,,,,,, पीडिता सुनसान प्लाट में दर्द से तड़पती रही... बिलखती रही,,,, एक बार दो बार नहीं बल्कि कई बार और बार बार पुलिस से मदद मांगने के लिए फोन भी किया,,,,, लेकिन तडपती बिलखती पीडिता की किसी ने कुछ नहीं सुनी,,,, हद तो तब हो गई जब पुलिस ने एसिड अटैक से जुडी इस वारदात का मामला दर्ज करने से ये कहकर मना कर दिया की मामला में कोर्ट में विचाराधीन है,,,,, मीडिया के दबाव में ही मामला दर्ज हुआ...
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में भी यही दरिंदगी हुई... तीन दबंगों ने एक नाबालिग को पहले डराया धमकाया फिर पूरे परिवार को मार देने की धमकी देकर महीनों गैंग रेप किया. परेशान नाबालिग ने जब पुलिस का सहारा लेना चाहा तो बदमाशों ने लड़की को बंधक बनाया और फिर उसके साथ बलात्कार किया. हैवानियत यही नहीं रूकी हैवानो ने रेप के बाद उसे मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी और फिर फरार हो गये...
रौंगटे खडे करने वाले ये मामले पूरे देश को दहला रहे हैं दिल दिमाग और जहन में कई सवाल खडे करते हैं ,,,,,
दिल्ली ही में पिछले कुछ समय में एक डेढ़ साल की बच्ची के साथ बलात्कार, एक 7 साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार और बाल दिवस पर एक डेढ़ साल की बच्ची से सामूहिक बलात्कार की घिनौनी घटना घटी |
दिल्ली पुलिस के आंकड़ों को देखें तो
- 2012 से लेकर 2014 तक महिलाओं के साथ 31,446 अपराध दर्ज किए गए और उनमें से केवल 150 मामलों में ही सजाएं हुई है
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2016-17 के जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में अपराध की उच्चतम दर 160.4 फीसदी रही,
- जबकि इस दौरान अपराध की राष्ट्रीय औसत दर 55.2 फीसदी है.
- दिल्ली में 2,155 दुष्कर्म के मामले,
- 669 पीछा करने के मामले और
- 41 मामले घूरने के दर्ज हुए
पूरा हाल कहता है कि दरिंदों को कानून का खौफ नहीं... जल्द सजा दिलाने के लिये कानूनी प्रक्रिताओं को तेज करने की बातें तो हो रही है लेकिन मामले कम कैसे होंगे इसका रास्ता अब तक नहीं मिला है
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MY BOOK : Pyar Mujhse Jo Kiya Tumne
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